रघुबार दयाल श्रीवास्तव: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अनसुने नायक
जानें आजमगढ़ के इस वीर स्वतंत्रता सेनानी की प्रेरक कहानी

प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
रघुबार दयाल श्रीवास्तव का जन्म 11 अगस्त 1911 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के रघ्घुपुर गांव में हुआ था। छोटी उम्र से ही उनके मन में सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के प्रति गहरी भावना थी। उनके गांव में जमींदारी प्रथा के तहत होने वाले शोषण को देखकर उन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का संकल्प लिया। उनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत उस समय के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी श्री सीताराम अस्थाना थे, जिनके मार्गदर्शन में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कदम रखा।
[](https://newskarnataka.com/india/uncelebrated-hero-of-indias-freedom-struggle-raghubar-dayal-srivastava/12082024/)सत्याग्रह आंदोलन में योगदान
1930 में रघुबार दयाल श्रीवास्तव ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस दौरान उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसक विरोध प्रदर्शन किए, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें जेल की सजा और यातनाएं सहनी पड़ीं। उनकी निष्ठा और साहस ने आजमगढ़ के युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। यह वह समय था जब रघुबार दयाल ने स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन को समर्पित करने का निर्णय लिया।
[](https://www.timesnownews.com/india/78th-independence-day-remembering-raghubar-dayal-azamgarhs-unsung-hero-in-indias-freedom-struggle-article-112432413)जमींदारी प्रथा के खिलाफ संघर्ष
जेल से रिहा होने के बाद, रघुबार दयाल ने सामाजिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया, विशेष रूप से जमींदारी प्रथा में व्याप्त शोषण को समाप्त करने पर। उस समय जमींदार बिना रसीद के किरायेदारों से राजस्व वसूलते थे, जिससे किसानों का शोषण होता था। रघुबार दयाल ने इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई, भले ही उनकी अपनी पारिवारिक आय इस व्यवस्था पर निर्भर थी। उनकी यह निस्वार्थता और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण उन्हें एक सच्चा जननायक बनाता है।
[](https://newskarnataka.com/india/uncelebrated-hero-of-indias-freedom-struggle-raghubar-dayal-srivastava/12082024/)क्विट इंडिया आंदोलन में भूमिका
1942 में शुरू हुए क्विट इंडिया आंदोलन में रघुबार दयाल श्रीवास्तव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने घर को स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बनाया, जहां ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उत्पीड़ित सेनानियों को शरण और सहायता प्रदान की जाती थी। इस दौरान उनके साहस और संगठनात्मक कौशल ने आंदोलन को मजबूती प्रदान की। उनके प्रयासों ने आजमगढ़ में स्वतंत्रता की लौ को और प्रज्वलित किया।
[](https://www.timesnownews.com/india/78th-independence-day-remembering-raghubar-dayal-azamgarhs-unsung-hero-in-indias-freedom-struggle-article-112432413)स्वास्थ्य और अंतिम दिन
लगातार जेल यात्राओं और अथक संघर्ष ने रघुबार दयाल के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला। 1949 में मात्र 38 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। हालांकि उनका जीवन छोटा था, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। रघुबार दयाल श्रीवास्तव उन अनगिनत अनसुने नायकों में से एक हैं, जिनके बलिदान ने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
[](https://newskarnataka.com/india/uncelebrated-hero-of-indias-freedom-struggle-raghubar-dayal-srivastava/12082024/)रघुबार दयाल श्रीवास्तव की विरासत
रघुबार दयाल श्रीवास्तव की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा नायक वही है जो अपने निजी हितों को त्यागकर समाज और देश के लिए लड़ता है। उनकी सामाजिक न्याय और स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता आज भी प्रेरणा का स्रोत है। आजमगढ़ के इस वीर सपूत को याद करना न केवल उनकी स्मृति को सम्मान देना है, बल्कि उन सभी अनसुने नायकों को श्रद्धांजलि देना है जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया।
VANDE MATARAM
Indian Independence | Indian Freedom Struggle | Indian National Movement
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